असम में विभिन्न समुदायों के बीच बढ़ते तनाव और कुछ घटनाओं का इस्तेमाल सांप्रदायिक और अंधराष्ट्रवादी आधार पर लोगों को बांटने के लिए किया जा रहा है। मौजूदा हालात के लिए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा और भाजपा के नेतृत्व वाली उनकी सरकार पूरी तरह जिम्मेदार हैं। भाजपा नेता हिमंत ने मुसलमानों को निशाना बनाने के अपने अभियान और स्वदेशी बनाम बाहरी के विभाजनकारी बयानबाजी में सारी हदें पार कर दी हैं। धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े लोगों के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाते हुए, हिमंत बिस्वा शर्मा ने अपनी राजनीति को और भी विभाजनकारी बना दिया है।
हिमंत शर्मा की विभाजनकारी राजनीति और भड़काऊ भाषणों की प्रवृत्ति ने लोगों के एक वर्ग को हिंसा का माहौल बनाने और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए उकसाया है। यौन उत्पीड़न के दो मामलों से निपटने के तरीके से यह स्पष्ट है कि शिवसागर शहर में मारवाड़ी व्यवसायी समुदाय से जुड़े दो लोगों द्वारा सत्रह वर्षीय लड़की पर हमला करने के बाद, कुछ संगठनों ने "श्वाहरी" लोगों के खिलाफ प्रदर्शन किया। इसमें शामिल अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बजाय, पूरे मारवाड़ी समुदाय को इस अपराध के लिए दोषी ठहराया गया। यह घटना ऊपरी असम में गैर-असमिया व्यापारियों के खिलाफ एक बड़े विरोध प्रदर्शन में बदल गई और राज्य के कैबिनेट मंत्री और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में शिवसागर शहर में समुदाय के प्रतिनिधियों को घुटने टेकने और माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया।
एक और गंभीर घटना नगांव जिले में हुई, जहां तीन कथित मुस्लिम युवकों द्वारा चौदह वर्षीय नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। इस घटना के खिलाफ आकोश पूर्वी बंगाल (अब बांगलादेश) मूल के मुसलमानों के खिलाफ हो गया, जिन्हें अपमानजनक रूप से "निवा" कहा जाता है। आरएसएस और भाजपा से जुड़े कुछ संगठनों ने "निवा" समुदाय को धमकाया और उन्हें ऊपरी असम छोड़ने के लिए कहा। "निवा" समुदाय के निर्माण श्रमिकों की बेरहमी से पिटाई की घटना के बाद, हजारों बंगाली भाषी मुसलमानों को ऊपरी असम के जिलों से भागना पड़ा।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा शर्मा ने विधानसभा में कहा कि वह पक्ष लेंगे और "निवा" मुसलमानों को असम पर कब्जा नहीं करने देंगे। उन्होंने अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए बड़े पैमाने पर मुसलमानों को भड़काने का अभियान चलाया है। इससे राज्य में महिलाओं की सुरक्षा करने में भी बुरी तरह विफलता देखने को मिल रही है और बलात्कार और हिंसा की भयावह घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।
सभी महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे कि छह पिछड़े समुदायों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग, भूमिहीन लोगों को भूमि के संरक्षण और वितरण की मांग, बाढ़ और कटाव की समस्याएं, और बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े, उपेक्षित हैं। इस पृष्ठभूमि में, शर्मा और भाजपा सरकार ने सांप्रदायिक अभियान चलाकर बेशर्मी से लोगों को विभाजित किया है। महिलाओं के खिलाफ अपराध समेत अपराधों की जिम्मेदारी केवल मुसलमानों पर डाली जा रही है। यहां तक कि राजधानी गुवाहाटी में कृत्रिम बाढ़ की समस्याओं को छिपाने के लिए हिमंत शर्मा ने "बाढ़ विहाद" शब्द भी गढ़ा था।
मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर रहते हुए, हिमंत शर्मा ने संवैधानिक मानदंडों की पूरी तरह अनदेखी की है। विधानसभा के बाहर और अंदर दोनों जगह, उनके बयान इस राज्य की राजनीतिक और संवैधानिक नैतिकता को रौंद रहे हैं। इसीलिए, अठारह विपक्षी दलों ने 29 अगस्त को असम के राज्यपाल के माध्यम से भारत के राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा है।
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