भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 2024 के अंत में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि की ओर कदम बढ़ाया है। इसरो ने अपने पीएसएलवी C-60 मिशन के तहत स्पेस डेक्स डॉकिंग एक्सपेरिमेंट को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है। इस मिशन को दो उपग्रहों, चेंजर और टारगेट, के जरिए अंजाम दिया गया है, जिनका वजन 220 किलोग्राम है। यह मिशन न केवल इसरो बल्कि भारत के लिए भी ऐतिहासिक माना जा रहा है। यदि यह मिशन सफल होता है, तो भारत रूस, अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास स्पेस डॉकिंग तकनीक होगी।
स्पेस डॉकिंग तकनीक की परिभाषा और इसकी महत्ता को समझना जरूरी है। स्पेस डॉकिंग का अर्थ है कि अंतरिक्ष में मौजूद एक अंतरिक्षयान को दूसरे अंतरिक्षयान के साथ जोड़ना। यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल होती है, क्योंकि दोनों यान अंतरिक्ष में बहुत तेज गति से गतिमान होते हैं। इस तकनीक के जरिए दो यानों को जोड़ने के साथ-साथ उनके बीच डेटा ट्रांसफर और पावर ट्रांसफर भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी यान में ऊर्जा की कमी हो जाए, तो दूसरे यान के जरिए उसे पावर सप्लाई की जा सकती है। इसके अलावा, खराब हुए पुर्जों को रिप्लेस करना या यान को मरम्मत के लिए सक्षम बनाना भी इस तकनीक का हिस्सा है।
यह मिशन भारत के भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण है। भारत ने 2035 तक अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। स्पेस डॉकिंग तकनीक इस दिशा में एक अहम कदम है, क्योंकि एक बड़े अंतरिक्ष स्टेशन को छोटे-छोटे हिस्सों में अंतरिक्ष में भेजकर जोड़ने की आवश्यकता होगी। इस मिशन के जरिए इसरो इस क्षमता को प्राप्त करने के करीब पहुंच रहा है।
पीएसएलवी C-60 मिशन को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारतीय समयानुसार रात 10:15 बजे लॉन्च किया गया। इस लॉन्च के दौरान पीएसएलवी रॉकेट ने चार स्टेजों में काम किया। पहले चरण में बूस्टर अलग हुआ, उसके बाद अन्य हिस्सों को सुचारु रूप से अलग कर दिया गया। चौथे चरण में चेंजर और टारगेट उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में स्थापित किया गया।
मिशन के तहत अंतरिक्ष में डॉकिंग प्रक्रिया को लाइव मॉनिटर किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में लेजर रेंज फाइंडर और प्रॉक्सिमिटी सेंसर का उपयोग किया गया है। लेजर रेंज फाइंडर के जरिए दोनों उपग्रहों की गति और दूरी का अनुमान लगाया जाता है। प्रॉक्सिमिटी सेंसर से यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों उपग्रह बिना किसी बाधा के सही ढंग से जुड़ सकें। डॉकिंग के लिए कैमरों का भी इस्तेमाल किया गया है, जो लाइव इमेज को धरती पर भेजते हैं।
डॉकिंग प्रक्रिया को समझने के लिए इसे एक अत्यधिक जटिल तकनीकी प्रक्रिया के रूप में देखा जा सकता है। दोनों उपग्रह अंतरिक्ष में हजारों किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहे होते हैं। इस दौरान उनके बीच डेटा ट्रांसफर, दूरी मापना, गति का अनुमान लगाना और सही समय पर कनेक्शन स्थापित करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस प्रक्रिया में किसी भी तरह की गलती मिशन को असफल बना सकती है।
स्पेस डॉकिंग तकनीक न केवल इसरो की वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रतीक है, बल्कि यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए कई संभावनाओं के द्वार खोलती है। यदि यह मिशन सफल होता है, तो भारत को कई लाभ होंगे:
लॉन्च के बाद मिशन की स्थिति पर नजर रखने के लिए इसरो की वैज्ञानिक टीम लगातार काम कर रही है। अब तक चारों चरण सफलतापूर्वक पूरे हो चुके हैं। चौथे चरण में उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया गया है। इसके बाद डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी, जिसे रिमोट कंट्रोल के जरिए संचालित किया जाएगा।
इस प्रक्रिया के दौरान उपग्रहों के बीच लेजर रेंज फाइंडर और प्रॉक्सिमिटी सेंसर का उपयोग किया जा रहा है। दोनों उपग्रहों के बीच डेटा ट्रांसफर और दूरी की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए सेंसरों की भूमिका महत्वपूर्ण है। लाइव इमेज के जरिए वैज्ञानिक यह देख सकेंगे कि उपग्रह किस गति से एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं और किस प्रकार से जुड़ रहे हैं।
इस मिशन की सफलता भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई पर ले जाएगी। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन, जो रूस और अमेरिका के संयुक्त प्रयास से बनाया गया है, भी इसी तकनीक का उपयोग करता है। भारत, जो अब तक उपग्रह प्रक्षेपण और चंद्रमा एवं मंगल मिशनों में सफलता प्राप्त कर चुका है, इस तकनीक को हासिल कर अंतरिक्ष में अपनी पकड़ और मजबूत करेगा।
पीएसएलवी C-60 मिशन की सफलता भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी। इससे इसरो को भविष्य में अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण और मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए आवश्यक अनुभव और तकनीकी ज्ञान मिलेगा। इसके साथ ही भारत अन्य देशों के साथ मिलकर अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में और भी बड़े कदम उठा सकेगा।
यह मिशन इस बात का प्रतीक है कि भारत, जो कभी अंतरिक्ष क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भर था, अब तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर हो चुका है। पीएसएलवी C-60 मिशन की सफलता न केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रतीक होगी, बल्कि यह भारत के युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
इसरो का पीएसएलवी C-60 मिशन भारत के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह मिशन न केवल भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान में एक अग्रणी देश के रूप में स्थापित करेगा, बल्कि देश की तकनीकी क्षमताओं को भी वैश्विक मंच पर मान्यता दिलाएगा। डॉकिंग तकनीक की सफलता से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को एक नई दिशा मिलेगी और यह मिशन भविष्य के अभियानों के लिए आधारशिला साबित होगा।
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