जौनपुर: जौनपुर के कुछ मुसलमानों ने अपने नाम के आगे "पांडे" और "दुबे" जैसे हिंदू गोत्रों को लगाना शुरू किया, लेकिन यह कदम उन्हें कट्टरपंथियों के निशाने पर ले आया। यह घटना एक लंबी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई है। इनमें से कुछ लोग, जिनके पूर्वज आठ पीढ़ी पहले "दुबे" या "पांडे" थे, मुगलों के दौर में शेख या सैयद बन गए थे। अब, जब उन्होंने अपने पारिवारिक गोत्र का पता लगाकर अपने नाम के आगे पुराने गोत्र लगाने शुरू किए, तो उन्हें धमकियों का सामना करना पड़ा। जौनपुर के नौशाद अहमद दुबे ने बताया कि उन्हें अपने पूर्वजों की जिज्ञासा हुई और उन्होंने अपनी पीढ़ियों का इतिहास खंगालना शुरू किया। आठ पीढ़ी पहले उनके पूर्वज लाल बहादुर दुबे थे, लेकिन औरंगजेब के समय में उनका नाम बदलकर लालन शेख दुबे कर दिया गया। नौशाद ने रानी के सराय गांव जाकर अपने परिवार की जड़ों का पता लगाया और फिर अपने नाम के आगे "दुबे" लगाना शुरू कर दिया। नवंबर में अपनी बेटी की शादी के निमंत्रण कार्ड में भी उन्होंने अपना नाम "दुबे" लिखा।
नाम बदलने के बाद से, नौशाद और उनके जैसे 60-70 लोगों को देश और विदेश से धमकियां मिल रही हैं। मिडल ईस्ट में रहने वाले कुछ लोगों ने उनके रिश्तेदारों को संदेश भेजा कि वे नौशाद को समझाएं, वरना उनके लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। कट्टरपंथियों ने उन पर "मुरत" (धर्म बदलने वाला) और "काफिर" जैसे आरोप लगाकर ऑडियो संदेश भी वायरल किए। इन धमकियों के कारण नौशाद और उनके परिवार वाले काफी खौफ में हैं। उनके कुछ रिश्तेदार जो मिडल ईस्ट और भीमंडी जैसे क्षेत्रों में रहते हैं, उन पर भी दबाव डाला जा रहा है।
यह घटनाक्रम सामाजिक और राजनीतिक बहस को जन्म दे रहा है। बीजेपी ने इसे जायज ठहराया, जबकि समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि नाम बदलना था तो "यादव" हो जाते, जिससे उनके वोट बैंक को फायदा होता। इस बयान ने विवाद को और बढ़ा दिया। दूसरी ओर, नौशाद दुबे और उनके जैसे अन्य लोग अपने गोत्र की जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। उनकी खोज से पता चला कि उनके पूर्वज कभी दुबे, पांडे या ठाकुर थे। अब जब उन्होंने अपने नाम के आगे ये गोत्र लगाने शुरू किए, तो यह कई कट्टरपंथियों को असहज कर गया।
महाकुंभ में उदासीन अखाड़ा के मंत श्री धर्मेंद्र दास जी ने ऐलान किया कि ऐसे लोगों को सम्मानित किया जाएगा, जिन्होंने अपने गोत्र के नाम को पुनः अपनाया है। उन्होंने कहा, "यह बदलाव की हवा है, और ऐसे लोगों का स्वागत हिंदुस्तान की सनातन परंपरा में किया जाएगा।" दूसरी ओर, कट्टरपंथी संगठन इन लोगों को धमकियां देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
जौनपुर में 60-70 लोग अपने पूर्वजों के गोत्र के नाम को अपनाकर नई पहचान बना रहे हैं। लेकिन इस बदलाव ने उन्हें एक तरफ धमकियों और दूसरी तरफ सामाजिक समर्थन के बीच खड़ा कर दिया है। यह घटनाक्रम भारतीय समाज की जड़ों और पहचान की जटिलताओं को दर्शाता है।
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