भारत-चीन विवाद : हाल ही में भारत और चीन के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ने की खबरें सामने आई हैं। चीन ने लद्दाख के कुछ क्षेत्रों को अपने क्षेत्र का हिस्सा बताया है, जिससे भारत ने सख्त विरोध दर्ज कराया है। यह घटना ऐसे समय में हो रही है जब भारत और चीन के बीच रिश्तों को बेहतर बनाने की कोशिशें चल रही थीं। हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल ने चीन का दौरा किया था, और यह उम्मीद जताई जा रही थी कि दोनों देशों के बीच के मतभेदों को सुलझाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब चीन ने हाल ही में दो नई काउंटियों की घोषणा की, जो उसने लद्दाख के क्षेत्रों में स्थित बताई। चीन के इस कदम ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा सवाल खड़ा कर दिया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे पर चीन को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि भारत किसी भी सूरत में चीन के इस अवैध कब्जे को मान्यता नहीं देगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जैसवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीन के इस दावे को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा, "चीन द्वारा की गई यह घोषणा अवैध है। हमने चीन को पहले ही सूचित कर दिया है कि भारत अपनी संप्रभुता और अखंडता से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगा। चीन के इस कदम का हमारी स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।"
इस विवाद के साथ ही एक और मुद्दा भी चर्चा में है। चीन तिब्बत के यारलुंग त्सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की योजना बना रहा है। यह नदी भारत में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना के नाम से जानी जाती है। चीन के इस बांध निर्माण को लेकर भारत और बांग्लादेश दोनों ने चिंता जताई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश में पानी की उपलब्धता और नदी के पर्यावरणीय संतुलन पर गहरा असर पड़ सकता है।
हाल के दिनों में चीन ने भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने की कोशिशें तेज कर दी थीं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की चीन यात्रा को भी इसी दिशा में एक कदम माना गया था। इसके अलावा, कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन ने भारत के साथ अपने रिश्ते बेहतर करने की बात कही थी। हालांकि, ताजा घटनाक्रम ने चीन की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
चीन का यह कदम उसकी "दोस्ती" की छवि के विपरीत है। जहां एक ओर चीन बातचीत के जरिए विवादों को सुलझाने की कोशिशों की बात करता है, वहीं दूसरी ओर वह ऐसी घोषणाएं करता है, जो भारत के क्षेत्रीय हितों के खिलाफ हैं।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता से समझौता नहीं करेगा। भारत के विरोध के बावजूद चीन ने अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा, "चीन का यह कदम न केवल अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन है, बल्कि यह भारत-चीन संबंधों में और अधिक दूरी बढ़ा सकता है।"
भारत और चीन के बीच यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है, जब दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए बातचीत का रास्ता अपनाने की कोशिशें चल रही थीं। यह घटना यह भी दर्शाती है कि चीन अपनी आक्रामक नीतियों से पीछे हटने के बजाय उन्हें और मजबूत कर रहा है।
भारत और चीन के संबंधों पर इसका क्या असर होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत ने चीन को सख्त संदेश दिया है कि वह अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता से किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। चीन द्वारा लद्दाख के क्षेत्रों पर दावा और तिब्बत में बांध निर्माण दोनों ही मुद्दे आने वाले दिनों में चर्चा और विवाद का मुख्य केंद्र बने रहेंगे।
भारत और चीन के बीच यह ताजा विवाद इस बात की ओर इशारा करता है कि दोनों देशों के संबंधों में सुधार की राह अभी भी कठिन और जटिल है। भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है, लेकिन यह देखना बाकी है कि चीन इस पर क्या प्रतिक्रिया देगा।
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