सीरिया: सीरिया में तख्ता पलट के बाद राष्ट्रपति बशर अल-असद देश छोड़कर भाग गए हैं और उनके राष्ट्रपति भवन में लूटपाट शुरू हो गई है। लोग महल में घुसकर बैग भर रहे हैं, कोई ब्रीफकेस ले जा रहा है तो कोई एलसीडी, कोई कुर्सी उठाकर भाग रहा है। ये तस्वीरें सीरियाई राष्ट्रपति के महल की हैं। विद्रोहियों ने दमिश्क पर कब्जा करते ही असद के महल पर धावा बोला। बिना किसी प्रतिरोध के विद्रोही महल में दाखिल हो गए। उनके पीछे-पीछे सीरियाई जनता भी महल में घुस गई।
पहले लोग महल के दफ्तर, ड्राइंग रूम और बेडरूम में सेल्फी लेने लगे। उसके बाद शुरू हुई लूटपाट। जनता ने हर जगह से सामान उठाना शुरू कर दिया। फर्नीचर से लेकर किचन का सामान तक लोगों ने उठा लिया। कुछ लोग अपनी मोटरसाइकिल लेकर महल के अंदर घुस गए और उस पर सामान लादकर फरार हो गए।
महल के अंदरुनी हिस्सों में भारी मात्रा में गुप्त सामान मिला है। बशर अल-असद का महल जमीन के ऊपर जितना भव्य है, उतना ही जमीन के नीचे भी फैला हुआ है। यहां कई सुरंगें और बंकर मिले हैं। ये बंकर किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं हैं। सुरंगों में पटरियां मिली हैं, जो संभवतः सीक्रेट एग्जिट के लिए इस्तेमाल होती थीं।
महल में असद का निजी बंदूकों का कलेक्शन भी मिला है। इसमें सैकड़ों बंदूकें हैं, जिनका वह निजी तौर पर इस्तेमाल करते थे। महल के गैराज में सैकड़ों लग्जरी कारें मिली हैं। इन महंगी कारों का इस्तेमाल शायद ही कभी हुआ हो, लेकिन ये उनके शौक का हिस्सा थीं।
दमिश्क की सबसे कुख्यात जेल "सैद नाया," जिसे "असद का स्लॉटर हाउस" भी कहा जाता है, पर भी विद्रोहियों ने कब्जा कर लिया है। इस जेल में फांसी के फंदे, आयरन टेबल और यातना देने के उपकरण मिले हैं। यह जेल उन बंदियों के लिए नरक समान थी जिन्हें यहां यातनाएं दी जाती थीं। बताया जा रहा है कि हर हफ्ते 50 से ज्यादा लोगों को यहां फांसी दी जाती थी। पिछले 14 साल में इस जेल में एक लाख से ज्यादा लोगों को यातना देकर मौत के घाट उतारा गया।
असद परिवार के 50 साल के शासन के अंत पर सीरियाई जनता सड़कों पर उतर आई। लोग नाच-गाकर, फायरिंग कर, और रैलियां निकालकर अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं। सिर्फ सीरिया ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इजराइल, तुर्की और नॉर्वे जैसे देशों में भी सीरियाई लोगों ने तख्ता पलट की खुशी मनाई।
गृहयुद्ध की स्थिति में इजराइल ने भी सीरिया में अपनी दखल दी है। इजराइली एयरफोर्स ने दमिश्क और अन्य इलाकों में विद्रोहियों के ठिकानों पर बमबारी की है। गोलन हाइट्स के माउंट हरमन की आर्मी चौकी पर इजराइली सेना ने कब्जा कर लिया। इजराइली प्रधानमंत्री ने इस दिन को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि यह असद के समर्थकों, हिज़्बुल्ला और ईरान के खिलाफ एक कड़ा संदेश है।
असद के सत्ता से हटने के बाद तुर्की और अन्य देशों में शरण लिए सीरियाई लोग अब अपने वतन लौट रहे हैं। टर्की-सीरिया बॉर्डर पर शरणार्थियों की लंबी कतारें देखी गईं। सीरिया में अब नए सिरे से बदलाव की उम्मीद की जा रही है, लेकिन गृहयुद्ध और इजराइल की दखल के कारण स्थिति अब भी तनावपूर्ण बनी हुई है।
इजराइल ने हाल ही में सीरिया में एक बड़े सैन्य अभियान को अंजाम दिया। यह हमला सीरिया की केमिकल वेपंस फैक्ट्री पर केंद्रित था, जिसे पूरी तरह तबाह कर दिया गया। इजराइल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि विद्रोही लड़ाकों को इन हथियारों तक पहुंचने का मौका न मिले। इस हमले को 1973 की अक्टूबर वॉर के बाद का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है, क्योंकि यह पहली बार है जब इजराइल ने सीरिया की सीमा को पार किया।
इजराइली फाइटर जेट्स ने साउथ सीरिया के दारा शहर में स्थित हथियार डिपो पर भारी बमबारी की। इस कदम का उद्देश्य सीरिया के आंतरिक युद्ध में हस्तक्षेप करना नहीं, बल्कि उन तत्वों को खत्म करना है जो इजराइल की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। इजराइली सेना ने बयान में कहा है कि उनकी प्राथमिकता केवल अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना है और वे सीरिया की राजनीति में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी नहीं करेंगे।
इजराइल का यह कदम इस बात का संकेत है कि वह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों के तहत किसी भी खतरे को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह हमला न केवल इजराइल की रणनीतिक मजबूती को दर्शाता है बल्कि यह भी दिखाता है कि वह क्षेत्रीय अस्थिरता को रोकने के लिए सक्रिय भूमिका निभाने से पीछे नहीं हटेगा।
बांग्लादेश में हाल के दिनों में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते हमले चिंता का विषय बन गए हैं। इन हमलों के बावजूद, बांग्लादेश में स्थिति और उलझी हुई नजर आ रही है। हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में सरकार की नाकामी पर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन समस्या यह है कि इन मुद्दों पर ध्यान देने के बजाय वहां भारत विरोधी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
इन प्रदर्शनों में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के सदस्यों ने भाग लिया, जिन्होंने आरोप लगाया कि भारत में बांग्लादेशी झंडे का अपमान किया गया। इसको लेकर बीएनपी के कार्यकर्ताओं ने ढाका में भारतीय उच्चायोग के सामने विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़ने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें रोका।
इसके अलावा, कुछ प्रदर्शनकारियों ने धमकी दी कि अगर भारत चटगांव मांगेगा तो वे बंगाल, बिहार और ओडिशा की मांग करेंगे। इस प्रकार, भारत विरोधी भावना को बढ़ावा देने वाले बयान और प्रदर्शन बांग्लादेश के आंतरिक मुद्दों पर पर्दा डालने का प्रयास प्रतीत होते हैं।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ भारत में भी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। श्रीनगर की सड़कों पर कश्मीरी हिंदुओं ने जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने पोस्टर और बैनरों के साथ मार्च करते हुए बांग्लादेश सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए।
प्रदर्शनकारियों ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को ज्ञापन सौंपा और अंतरराष्ट्रीय मंचों, जैसे ह्यूमन राइट्स कमीशन, से हस्तक्षेप की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि बांग्लादेश में माइनॉरिटी के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
कश्मीरी प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति से अपनी तुलना की। उन्होंने 35 साल से अपने समुदाय द्वारा झेली गई पीड़ा का जिक्र किया और कहा कि वे बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को भली-भांति समझ सकते हैं। यह प्रदर्शन इस बात को दर्शाता है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार एक बड़ा मानवाधिकार संकट बनते जा रहे हैं।
बांग्लादेश में बढ़ते सांप्रदायिक हमलों और भारत विरोधी प्रदर्शन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित किया है। जहां एक ओर बांग्लादेश सरकार इस स्थिति को संभालने में नाकाम नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों से कार्रवाई की मांग तेज हो रही है।
प्रदर्शनकारियों ने ह्यूमन राइट्स कमीशन, यूनाइटेड नेशन्स और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से अपील की कि वे बांग्लादेश में हो रही निर्दोष हत्याओं और माइनॉरिटी पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिए दबाव बनाएं।
भविष्य में इन मुद्दों का समाधान आसान नहीं होगा। क्षेत्रीय राजनीति और धार्मिक ध्रुवीकरण ने स्थिति को जटिल बना दिया है। भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों पर भी इन घटनाओं का गहरा असर पड़ सकता है। दोनों देशों को चाहिए कि वे इस तनावपूर्ण स्थिति का हल निकाले, ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखी जा सके।
अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करना न केवल बांग्लादेश बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल है। इसका समाधान अंतरराष्ट्रीय सहयोग और राजनीतिक इच्छाशक्ति के माध्यम से ही संभव हो सकेगा।
© Copyright 2025 by शिवंलेख - Design & Developed By Codes Acharya