पाकिस्तान VS तालिबान : 15 अगस्त 2021, यह वही तारीख है जब लगभग 20 साल बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता में वापसी की। इसी महीने, अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान से अपनी वापसी का निर्णय लिया और इसके साथ ही नाटो सेनाएं भी अफगानिस्तान से विदा हो गईं। इस फैसले के साथ, अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों तक अमेरिकी और नाटो सेनाओं की उपस्थिति समाप्त हो गई। उस समय पाकिस्तान, जहां इमरान खान की सरकार थी, इस घटनाक्रम से बेहद खुश था। पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई भी तालिबान की वापसी पर अपनी खुशी को छिपा नहीं पाए।
हालांकि, जो तालिबान कभी पाकिस्तान के लिए रणनीतिक सहयोगी था, आज वही पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन चुका है। तालिबान ने हाल ही में पाकिस्तानी हमलों का जवाब देते हुए 19 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस घटना ने पाकिस्तान में राजनीतिक और सैन्य हलकों में हलचल मचा दी है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पार्टी ने इस मुद्दे पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर आरोप लगाए, यह कहते हुए कि उनकी तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ नजदीकियां रही हैं।
तालिबान और टीटीपी का रिश्ता पाकिस्तान के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। टीटीपी, जो कि एक प्रमुख आतंकी संगठन है, ने पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह छेड़ रखा है। बलूच विद्रोही समूहों के साथ टीटीपी का गठजोड़ पाकिस्तान के लिए और भी घातक साबित हो रहा है। बलूच लिबरेशन आर्मी और टीटीपी ने हाल ही में एक साथ मिलकर लड़ाई लड़ने का ऐलान किया।
टीटीपी का पाकिस्तान-अफगानिस्तान के सटे इलाकों में काफी प्रभाव है। जब पाकिस्तानी सेना टीटीपी के खिलाफ अभियान चलाती है, तो उसके लड़ाके अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में शरण ले लेते हैं। बीते कुछ वर्षों में टीटीपी और बलूच विद्रोहियों ने पाकिस्तानी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया है।
24 दिसंबर को, पाकिस्तानी सेना ने अफगानिस्तान के पक्तिका प्रांत में हवाई हमला किया। पाकिस्तान का दावा था कि इस हमले में उसने टीटीपी के ठिकानों को निशाना बनाया है। हालांकि, तालिबान ने इस दावे को खारिज कर दिया। तालिबान ने कहा कि जिन इलाकों पर हमला किया गया, वहां शरणार्थी और आम नागरिक रहते हैं, न कि टीटीपी के लड़ाके।
पाकिस्तानी हमले के बाद, तालिबान के लड़ाकों ने भी जवाबी कार्रवाई की। उन्होंने पाकिस्तानी सेना की चौकियों पर हमला किया और 19 सैनिकों को मारने का दावा किया। यह घटनाक्रम दोनों पक्षों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है।
तालिबान की बढ़ती ताकत और आक्रामकता ने पाकिस्तान में चिंता बढ़ा दी है। अफगानिस्तान की सत्ता संभालने के बाद तालिबान ने अपनी सेना को औपचारिक रूप दिया है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज की रिपोर्ट के अनुसार, तालिबान के पास इस समय लगभग 1,50,000 सक्रिय लड़ाके हैं।
तालिबान के लड़ाके दुर्गम पहाड़ों और कबायली इलाकों में बसे हुए हैं, जहां तक पहुंचना पाकिस्तानी सेना के लिए आसान नहीं है। अमेरिका और नाटो सेनाओं की तरह पाकिस्तान को भी तालिबान के इन क्षेत्रों में प्रभावी कार्रवाई करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
पाकिस्तानी हवाई हमलों के बाद, अफगानिस्तान के खोस्त इलाके में स्थानीय लोगों ने पाकिस्तान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने पाकिस्तान पर निर्दोष नागरिकों को मारने का आरोप लगाया। एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि पाकिस्तानी हमले में उसने अपने परिवार के 15 सदस्यों को खो दिया, जिनमें उसके पिता, भाई, भतीजे, मां, और बहनें शामिल थीं। उसने इसे एक जघन्य अपराध करार दिया।
तालिबान की वापसी पर खुश होने वाला पाकिस्तान आज तालिबान से डर रहा है। एक समय तालिबान का समर्थन करने वाला पाकिस्तान अब खुद तालिबान के निशाने पर है। टीटीपी और बलूच विद्रोहियों के साथ तालिबान का गठजोड़ पाकिस्तान के लिए एक बड़ी सुरक्षा चुनौती बन चुका है।
तालिबान और पाकिस्तान के रिश्तों की यह बदलती तस्वीर दिखाती है कि कूटनीतिक और रणनीतिक सहयोग कब प्रतिद्वंद्विता में बदल सकता है। तालिबान के खिलाफ पाकिस्तान की नीतियां अब उलटी पड़ रही हैं, और इसका खामियाजा पाकिस्तानी नागरिकों और सेना को भुगतना पड़ रहा है। यह स्थिति पाकिस्तान को एक गंभीर संदेश देती है कि शॉर्ट-टर्म रणनीतिक सहयोग कभी-कभी लंबे समय में खतरनाक साबित हो सकता है।
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