श्रीलंका में हाल ही में हुए राष्ट्रपति चुनाव को शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से संपन्न कर लिया गया। यह चुनाव 2022 के आर्थिक संकट के बाद देश में पहली बार हुआ, जिसे लेकर नागरिकों में व्यापक उत्सुकता थी। शनिवार को सभी 22 निर्वाचन जिलों में मतदान सुबह 7 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक चला। चुनाव के दौरान कहीं से भी हिंसा या सुरक्षा उल्लंघन की कोई खबर नहीं आई, जिससे चुनावी प्रक्रिया को सुरक्षित और शांतिपूर्ण कहा जा सकता है।
चुनाव के दौरान लगभग 1.7 करोड़ पात्र मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अवसर मिला। निर्वाचन अधिकारियों ने जानकारी दी कि मतदान केंद्रों पर दोपहर 2 बजे तक 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हो चुका था। हालांकि, कुल मतदान प्रतिशत का अंतिम आंकड़ा अभी जारी नहीं किया गया है। अधिकारियों ने बताया कि जो लोग मतदान केंद्र में शाम 4 बजे तक प्रवेश कर चुके थे, उन्हें निर्धारित समय सीमा के बाद भी वोट डालने की अनुमति दी गई।
जाफना जिले में मतदान की रफ्तार अन्य जिलों की तुलना में धीमी रही। इसका कारण यह था कि एक तमिल अल्पसंख्यक कट्टरपंथी समूह ने स्थानीय लोगों से चुनाव में भाग नहीं लेने की अपील की थी। हालांकि, देश के अधिकांश हिस्सों में मतदान बिना किसी बाधा के संपन्न हुआ।
चुनाव अधिकारियों ने बताया कि शाम 4 बजे मतदान समाप्त होने के तुरंत बाद डाक मतों की गिनती शुरू कर दी गई। डाक मतदान चार दिन पहले आयोजित किया गया था, जिसमें ज्यादातर चुनाव कर्मियों, सैनिकों और पुलिसकर्मियों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था। कोलंबो शहर के उप-चुनाव आयुक्त एम.के.एस.के बंदरमापा ने कहा कि डाक मतपत्रों की गिनती के बाद शाम 6 बजे से सामान्य मतों की गिनती शुरू कर दी जाएगी।
श्रीलंका के इस राष्ट्रपति चुनाव की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लगभग 8,000 स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की तैनाती की गई थी। इनमें यूरोपीय संघ, राष्ट्रमंडल देशों और एशियन नेटवर्क फॉर फ्री इलेक्शन्स के 116 पर्यवेक्षक शामिल थे। साथ ही दक्षिण एशियाई देशों के सात अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने भी इस चुनाव का पर्यवेक्षण किया।
स्थानीय स्तर पर पीपुल्स एक्शन फॉर फ्री एंड फेयर इलेक्शन (PAFFREL) ने 4,000 पर्यवेक्षकों को तैनात किया था। श्रीलंका के इस चुनाव को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, खासकर मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के लिए। विक्रमसिंघे ने अपने कार्यकाल के दौरान देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने का दावा किया है, और इस चुनाव को उनके लिए एक महत्वपूर्ण अग्निपरीक्षा के रूप में देखा जा रहा है।
इस चुनाव को श्रीलंका का सबसे दिलचस्प राष्ट्रपति चुनाव माना जा रहा है, क्योंकि 1982 के बाद पहली बार इतने व्यापक स्तर पर प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है। कुल 38 उम्मीदवार इस चुनाव में मैदान में थे, जिनमें से प्रमुख तीन उम्मीदवारों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था।
मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, जो एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे, नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के अनुरा कुमारा दिसानायके और समागी जन बालावेगया (SJB) के साजिथ प्रेमदासा से कड़ी टक्कर मिली। 75 वर्षीय विक्रमसिंघे ने मतदाताओं से अपील की थी कि वे उनके प्रयासों को ध्यान में रखते हुए उन्हें पांच साल का नया कार्यकाल दें, ताकि वे द्वीपीय देश को आर्थिक संकट से बाहर निकाल सकें।
श्रीलंका ने अप्रैल 2022 में खाद्य पदार्थों, ईंधन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी के बीच दिवालिया होने की घोषणा की थी। इसके बाद महीनों तक देश में व्यापक विरोध-प्रदर्शन हुए, जिनमें कुछ प्रदर्शन हिंसक हो गए थे। इस उथल-पुथल के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ने और इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था।
इसके बाद संसद ने रानिल विक्रमसिंघे को नया राष्ट्रपति नियुक्त किया। उनके कार्यकाल के दौरान श्रीलंकाई मुद्रा स्थिर हुई है, महंगाई दर जो कि आर्थिक संकट के चरम पर 70 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, अब घटकर लगभग शून्य हो गई है। साथ ही देश की विकास दर और सरकार के राजस्व संग्रह में भी सुधार हुआ है।
कोलंबो में मतदान के बाद विक्रमसिंघे ने कहा कि यह चुनाव श्रीलंका के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। उन्होंने इसे पारंपरिक राजनीति और अर्थव्यवस्था से आगे बढ़ने का अवसर बताया। विक्रमसिंघे के अनुसार, यह चुनाव देश को एक नई सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की ओर ले जाने का अवसर है।
श्रीलंका के इस चुनाव में मतदाता तीन प्रमुख उम्मीदवारों की वरीयता क्रम के आधार पर वोट डालते हैं। इस प्रक्रिया में मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार को पहले स्थान पर रखते हैं, फिर दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमश: अन्य उम्मीदवारों को रखते हैं। इस प्रणाली का उद्देश्य यह है कि यदि किसी उम्मीदवार को प्रथम वरीयता मतों से पूर्ण बहुमत नहीं मिलता, तो दूसरे और तीसरे वरीयता के मतों की गिनती के आधार पर अंतिम विजेता का चयन किया जा सके।
श्रीलंका के इस ऐतिहासिक चुनाव में लोगों की सक्रिय भागीदारी और मतदान की सुचारू प्रक्रिया ने लोकतंत्र को मजबूत किया है। इस चुनाव से यह भी स्पष्ट हो गया है कि देश की जनता अपने भविष्य के बारे में गंभीरता से सोच रही है, और वे आर्थिक संकट से उबरने के लिए सशक्त नेतृत्व का चयन करना चाहती है।
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