पाकिस्तान इस समय अपनी ही बनाई मुश्किलों में फंस चुका है। अफगानिस्तान का तालिबान और बलूच लिबरेशन आर्मी पहले ही पाकिस्तान पर हमले कर रहे थे, लेकिन हाल ही में पाकिस्तानी तालिबान यानी टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) ने ऐसा कदम उठाया है, जिसने पाकिस्तान को सकते में डाल दिया है। टीटीपी ने पाकिस्तान के 16 वैज्ञानिकों को अगवा कर लिया है। ये सभी वैज्ञानिक पाकिस्तान के परमाणु ऊर्जा आयोग से जुड़े थे और खैबर पख्तूनख्वा में चल रहे पाकिस्तान के एटॉमिक माइनिंग प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे।
टीटीपी का हमला यहीं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने पाकिस्तान के एटॉमिक सेंटर से बड़ी मात्रा में यूरेनियम भी लूट लिया। यूरेनियम का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने में होता है, और इस घटना ने पाकिस्तान को अंदर से हिला दिया है। टीटीपी ने पाकिस्तान से साफ-साफ कहा है कि अगर वे अपने वैज्ञानिकों को वापस चाहते हैं, तो उन्हें तालिबान के खिलाफ की जा रही सैन्य कार्रवाई को बंद करना होगा और उनके जेल में बंद लड़ाकों को रिहा करना होगा।
इस घटना ने पाकिस्तान को एक गहरे संकट में डाल दिया है। जहां एक तरफ उन्हें अपने वैज्ञानिकों की सुरक्षा की चिंता है, वहीं दूसरी तरफ उनकी परमाणु संपत्ति पर भी खतरा मंडरा रहा है। यह घटना पाकिस्तान की सुरक्षा और उसकी परमाणु संपत्तियों के प्रति उसकी लापरवाही को उजागर करती है।
उधर, अफगानिस्तान के तालिबान ने भी पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। हाल ही में अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने भारत के साथ मिलकर एक बड़ा ऐलान किया है। तालिबान ने कहा है कि पाकिस्तान ने जिन लाखों अफगान शरणार्थियों को अपने देश से जबरन निकाल दिया था, उनकी मदद अब भारत करेगा। तालिबान ने यह भी स्पष्ट किया है कि वे भारत के अफगानिस्तान में बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू करने और अपनी उपस्थिति बढ़ाने का समर्थन करेंगे।
यह पहली बार है जब भारत ने तालिबान के साथ खुलकर अपना रिश्ता मजबूत किया है। भारत के इस कदम को एक बड़ा रिस्क माना जा रहा है, लेकिन इसके संभावित लाभ बहुत अधिक हैं। अगर भारत पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) पर कोई कदम उठाना चाहता है, तो इसमें तालिबान की भूमिका अहम हो सकती है। भारत की रणनीति यह हो सकती है कि एक तरफ से भारतीय सेना पीओके पर दबाव बनाए और दूसरी तरफ तालिबान उनकी मदद करे।
इस बीच, पाकिस्तान दोहरी मुश्किलों में फंस गया है। एक तरफ टीटीपी के साथ बातचीत करने का दबाव है, तो दूसरी तरफ अफगानिस्तान और भारत के बढ़ते संबंध उसे और ज्यादा कमजोर कर रहे हैं। भारत और तालिबान का यह गठबंधन पाकिस्तान के लिए एक नई चुनौती है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना का प्रभाव दिख रहा है। जहां एक तरफ पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर सवाल उठ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत हो रही है। पीएम मोदी ने जिस तरह से अफगानिस्तान में अपनी स्थिति मजबूत की है, उसे "भारत का ग्रेट गेम" कहा जा रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक विदेश नीति के विपरीत, भारत ने कूटनीतिक और रणनीतिक तरीके से अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को बढ़ाया है। पाकिस्तान को समझ नहीं आ रहा कि वह टीटीपी, अफगानिस्तान के तालिबान और भारत के साथ एक ही समय पर कैसे निपटे।
यह घटनाक्रम न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए महत्वपूर्ण है। पाकिस्तान के वैज्ञानिकों की रिहाई और यूरेनियम की वापसी के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे, यह देखना बाकी है। वहीं, भारत और तालिबान के बीच बढ़ती नजदीकियां भविष्य में दक्षिण एशिया की राजनीति को नई दिशा दे सकती हैं।
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