महाकुंभ प्रयागराज : प्रयागराज में महाकुंभ अब मात्र 12 दिन दूर है, और हर बीतते दिन के साथ कुंभ मेले की रौनक बढ़ती जा रही है। साधु-संतों के अखाड़े अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ कुंभ नगरी में पहुंच रहे हैं। अटल अखाड़ा और अग्नि अखाड़े का आज भव्य नगर प्रवेश हुआ, जिसमें लगभग 5 किलोमीटर लंबी शोभा यात्रा निकाली गई। गाजे-बाजे के साथ साधु-संतों की टोली का कुंभ नगरी पहुंचना देश-विदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार महाकुंभ में कई खास आयोजन और बदलाव हो रहे हैं। आइए जानें कि इस बार महाकुंभ में क्या नया होगा, कौन सी परंपराएं बदल रही हैं, और 144 वर्षों के बाद ऐसा क्या अद्भुत संयोग बन रहा है।
महाकुंभ का सीधा संबंध बृहस्पति ग्रह (जुपिटर) की सूर्य की परिक्रमा से है। बृहस्पति का एक चक्र पृथ्वी के 12 वर्षों के बराबर होता है। इसी कारण हर 6 वर्षों में अर्धकुंभ और 12 वर्षों में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। इस बार का कुंभ 144 वर्षों के खगोलीय संयोग का परिणाम है। 144 वर्षों बाद ग्रह-नक्षत्रों का ऐसा मेल हुआ है, और इसके बाद ऐसा अद्भुत संयोग अगले 144 वर्षों में ही आएगा। कुंभ मेले का पहला उल्लेख 7वीं सदी में चीनी यात्री वेन सांग के लेखों में मिलता है, परंतु इसकी परंपरा इससे भी पुरानी मानी जाती है।
महाकुंभ में अमृत स्नान का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इस बार शाही स्नान का नाम बदलकर "अमृत स्नान" कर दिया गया है। यह निर्णय साधु-संतों की मांग पर लिया गया। अमृत स्नान के छह मुख्य मुहूर्त इस प्रकार हैं:
पहले शाही स्नान में वीआईपी प्रोटोकॉल लागू था, लेकिन इस बार इसे समाप्त कर दिया गया है। अब संगम का मुख्य स्नान सभी श्रद्धालुओं के लिए समान रूप से खुला रहेगा, जिससे धर्म और समानता के संदेश को बल मिलेगा।
महाकुंभ में साधु-संतों का अखाड़ों के साथ आगमन एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इसे पहले "पेशवाई" कहा जाता था, लेकिन इस बार इसे "नगर प्रवेश" नाम दिया गया है। 13 अखाड़ों में बंटे साधु-संत अपनी ध्वजा और परंपरा के साथ कुंभ नगरी पहुंच रहे हैं। इनमें प्रमुख हैं:
2019 के अर्धकुंभ में पहली बार किन्नर अखाड़े को शाही स्नान की मान्यता दी गई थी। इस बार नगर प्रवेश की शोभा यात्रा अद्भुत और भव्य है, जो सनातन परंपराओं की विविधता को दर्शाती है।
इस बार के महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है, जो पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ सकती है। 2019 में अर्धकुंभ में लगभग 5 करोड़ श्रद्धालु पहुंचे थे, और 2013 के पूर्णकुंभ में यह संख्या 35 करोड़ तक पहुंची थी। इस बार देश-विदेश से भक्त आस्था की डुबकी लगाने प्रयागराज पहुंचेंगे।
इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की व्यवस्था के लिए प्रशासन पूरी तरह तैयार है। सुरक्षा, स्वच्छता, परिवहन, और जल व्यवस्था को लेकर विशेष प्रबंध किए गए हैं। घाटों को साफ-सुथरा बनाया गया है, और संगम क्षेत्र में स्नान की सुविधाओं को उन्नत किया गया है। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया है कि हर भक्त को सुरक्षित और आनंदमय अनुभव मिले।
कुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सनातन संस्कृति का प्रतीक है। देवासुर संग्राम और अमृत की बूंदों से जुड़ी पौराणिक कथाएं इस पर्व के महत्व को बढ़ाती हैं। कुंभ मेले की परंपरा भारतीय संस्कृति की गहराई और आस्था को दर्शाती है, और यह विश्व में सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है।
कुंभ मेले की पौराणिक कहानियों और खगोलीय गणनाओं के बीच अद्भुत तालमेल है। बृहस्पति ग्रह की चाल और 12 राशियों के चक्र का महत्व इस आयोजन को विशेष बनाता है। यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति में विज्ञान और आस्था का संगम सदियों से चला आ रहा है।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर और सनातन परंपरा का प्रतीक है। साधु-संतों का नगर प्रवेश, अमृत स्नान, और विशाल भक्तों की संख्या इसे एक ऐतिहासिक आयोजन बनाते हैं। प्रयागराज का यह महाकुंभ सदियों पुरानी परंपराओं और आस्थाओं को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाला एक ऐतिहासिक अवसर है।
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