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तिरुपति मंदिर के प्रसाद में पशु चर्बी मिलाए जाने का आरोप

तिरुपति मंदिर के प्रसाद में पशु चर्बी मिलाए जाने का आरोप

धर्म

  •  21 Sep 2024
  •  12
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हाइलाइट्स

  • तिरुपति लड्डू में जानवरों की चर्बी का विवाद
  • चिलकुर बालाजी मंदिर के पुजारी की प्रतिक्रिया
  • सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की मांग
  • राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कांग्रेस का बयान
  • मंदिर प्रशासन का स्पष्टीकरण
  • धार्मिक विवाद की गहराई और राजनीतिक प्रभाव

तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलावट के मुद्दे पर हाल ही में उभरे विवाद ने पूरे देश में सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब तिरुपति मंदिर के प्रसिद्ध लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी और मछली के तेल के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया। इस मुद्दे ने न केवल धार्मिक भावनाओं को झकझोरा, बल्कि सरकार की जिम्मेदारी और मंदिर प्रशासन की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए।

तिरुपति लड्डू में जानवरों की चर्बी का विवाद

यह विवाद तब शुरू हुआ जब आंध्र प्रदेश के मंत्री नारा लोकेश ने एक वीडियो क्लिप साझा की, जिसमें उन्होंने तिरुपति मंदिर में घी के बजाय जानवरों की चर्बी और मछली के तेल का उपयोग होने का आरोप लगाया। इस आरोप के बाद से देश भर में सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच आक्रोश फैल गया।

मामला तब और गंभीर हो गया जब राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की रिपोर्ट में तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी और फिश ऑयल का उपयोग होने की बात सामने आई। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद से मंदिर की पवित्रता और धार्मिक रीति-रिवाजों पर सवाल उठने लगे। यह मसला इस वजह से भी गंभीर हो गया है, क्योंकि तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद के रूप में लड्डू को विशेष स्थान प्राप्त है और इसे भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाए जाने वाले पवित्र प्रसाद के रूप में देखा जाता है।

चिलकुर बालाजी मंदिर के पुजारी की प्रतिक्रिया

चिलकुर बालाजी मंदिर के मुख्य पुजारी रंगराजन ने इस विवाद पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि यह मसला केवल एक विवाद नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। एएनआई को दिए गए एक साक्षात्कार में पुजारी रंगराजन ने कहा, "पिछले दो दिनों से मैं तिरुपति लड्डू पर हो रहे विवाद की मीडिया रिपोर्ट्स देख रहा हूं। यह सिर्फ विवाद नहीं है, बल्कि इससे हम जैसे करोड़ों लोगों की भावनाओं को सीधे तौर पर ठेस पहुंची है। इनमें से ज्यादातर लोग सनातन धर्म में आस्था रखते हैं और भगवान की पूजा करते हैं।"

उन्होंने प्रसादम बनाने की निविदा प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए और कहा कि जो लोग इस कथित मिलावट के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। पुजारी ने यह भी कहा कि निविदा प्रक्रिया में सबसे कम बोली लगाने वाले को चुनना एक गंभीर गलती है, क्योंकि इससे गुणवत्तापूर्ण सामग्री का चयन नहीं हो पाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि आज की स्थिति में अच्छे गाय के घी की कीमत 1000 रुपये प्रति किलो से कम नहीं हो सकती, जबकि किसी ने 320 रुपये प्रति किलो की बोली लगाई। ऐसे में यह साफ है कि घी में मिलावट की जा रही है।

सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की मांग

पुजारी रंगराजन ने आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण के उस बयान का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने मंदिरों के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सनातन धर्म रक्षा बोर्ड के गठन की मांग की थी। उन्होंने कहा कि मंदिरों की पवित्रता और धार्मिक रीति-रिवाजों की रक्षा के लिए एक केंद्रीय धार्मिक परिषद का गठन होना चाहिए, जिसे धार्मिक प्रमुख, मठाधिपति, पिताधिपति और सेवानिवृत्त न्यायाधीश चलाएं। इस परिषद के तहत मंदिरों का संचालन किया जा सकता है, जिससे ऐसे विवादों से बचा जा सके।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और कांग्रेस का बयान

इस विवाद पर कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अगर तिरुपति लड्डू में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल हुआ है, तो इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। उन्होंने इसे भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ बताया और कहा कि इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। साथ ही उन्होंने इस मुद्दे के तार ध्रुवीकरण की साजिश से जुड़े होने की भी आशंका जताई।

पवन खेड़ा ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि चुनावी मौसम के बीच भाजपा इस तरह के विवादों को उछालकर लोगों के बीच ध्रुवीकरण की साजिश रच रही है। उन्होंने कहा, "अगर तिरुपति मंदिर में भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में जानवरों के मांस होने के संबंध में किए गए दावे गलत हैं, तो भी भक्तगण इसे माफ नहीं करेंगे। भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है, जिसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।"

मंदिर प्रशासन का स्पष्टीकरण

तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के पूर्व अध्यक्ष और YSR कांग्रेस पार्टी के नेता YV सुब्बारेड्डी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। उन्होंने दावा किया कि प्रसादम तैयार करने के लिए केवल जैविक सामग्री का ही उपयोग किया जाता है और इसमें किसी भी प्रकार की मिलावट नहीं होती। सुब्बारेड्डी ने कहा कि तिरुपति बालाजी मंदिर में तैयार किए जाने वाले प्रसादम की गुणवत्ता को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाता और इसे पूरी शुद्धता और पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार तैयार किया जाता है।

उन्होंने कहा कि मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता और शुद्धता को लेकर इस तरह के आरोप न केवल मंदिर की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि भक्तों की धार्मिक भावनाओं को भी आहत करते हैं। उन्होंने इन आरोपों की निंदा की और कहा कि इसे लेकर मंदिर प्रशासन और सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि ऐसी अफवाहों को फैलने से रोका जा सके।

धार्मिक विवाद की गहराई और राजनीतिक प्रभाव

यह विवाद केवल धार्मिक दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। तिरुपति बालाजी मंदिर जैसे प्रतिष्ठित धार्मिक स्थलों से जुड़ी किसी भी प्रकार की घटना राजनीतिक बहस का हिस्सा बन जाती है। धार्मिक स्थलों के साथ इस तरह के विवादों से धार्मिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण बढ़ने की संभावना रहती है।

इस मामले में भी भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो चुका है। जहां एक तरफ भाजपा इसे एक धार्मिक अपवित्रता के रूप में देख रही है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक और प्रयास मान रही है। इस प्रकार, यह विवाद न केवल धार्मिक भावनाओं को प्रभावित कर रहा है, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है।

तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल का आरोप एक गंभीर मुद्दा है जिसने देशभर में सनातन धर्म के अनुयायियों को गहराई से झकझोर दिया है। हालांकि इस विवाद पर मंदिर प्रशासन ने अपनी सफाई दी है और आरोपों को खारिज किया है, लेकिन भक्तों की आस्था को ठेस पहुंची है।

इस मुद्दे ने मंदिरों के प्रबंधन और धार्मिक स्थलों की शुद्धता की सुरक्षा के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता को भी उजागर किया है। पुजारी रंगराजन द्वारा उठाई गई सनातन धर्म रक्षा बोर्ड की मांग इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। अब देखना होगा कि सरकार और मंदिर प्रशासन इस मामले में किस प्रकार की कार्रवाई करते हैं, ताकि भक्तों की आस्था को पुनः स्थापित किया जा सके और भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।

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